लुप्त हो जाएगा आठवां बैकंठ बद्रीनाथ जानिये कब और कैसे

लुप्त हो जाएगा आठवां बैकंठ बद्रीनाथ जानिये कब और कैसे

Jun 7, 2023 - 15:48
Jun 7, 2023 - 15:50
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1. Badrinath dham in Hindi

Badrinath dham in Hindi

पोस्ट में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यतओ के अनुसार है। सनातनी हो तो पोस्ट को जरूर ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

जय बद्रीविशाल

भगवान विष्णु के अवतार कल्की करेंगे कलयुग को समाप्त

 

ऐसा माना जाता है कि कलयुग में एक दिन जोशीमठ नरसिंह की मूर्ति का कभी न नष्ट होने वाला हाथ अंततः गिर जाएगा और विष्णु याग के पास पतमिला में जय और विजय के पहाड़ गिर जाएंगे जिस कारण बद्रीनाथ धाम में जाने का मार्ग बहुत ही दुर्गम हो जाएगा।

 

जिसके परिणामस्वरूप बद्रीनाथ का फिर से प्रत्यावर्तन होगा और भविष्य बद्री में बद्रीनाथ की पूजा की जाएगी भगवान विष्णु के अवतार कल्की कलयुग को समाप्त करेंगे और पुनः सतयुग की शुरूआत होगी इस समय बद्रीनाथ धाम को भविष्य बद्री में पुनर्स्थापित किया जाएगा।

फिर सामने आएंगे भविष्य बद्रीविशाल

 

इसके बाद भविष्य में बद्रीनाथ भगवान जोशीमठ से 22 किमी आगे भविष्य बद्री के रूप में प्रकट होकर दर्शन देंगे। भविष्य के बद्रीनाथ भविष्य बद्री का मंदिर उपन में है, जो जोशीमठ से दूर पूर्व में लता की ओर है। यह तपोवन से दूसरी तरफ है और यहां धौलीगंगा नदी के ऊपर है यह घने जंगलो के बीच स्थित है यहां पहुचने के लिए धौली नदी के किनारे का रास्ता काफी कठिन है धौलीगंगा का अर्थ होता है (सफेद पानी) और वास्तव में यह लगभग हर जगह तेज धारा के साथ तपोवन से ऊपर की तरफ से दोनों ओर लगभग सीधा चट्टानों के मध्य से तेजी से गुजरती है

मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है और अभी वर्तमान में भगवान नरसिंह भगवान के हाथ का वह हिस्सा सूई के गोलाई के बराबर रह गया है।

ऐसे में जिस दिन ये हाथ अलग हो जाएगा उस दिन नर और नारायण पर्वत ( जय-विजय पर्वत) आपस में मिल जाएंगे और उसी क्षण से बद्रीनाथ धाम का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। ऐसे में भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।

भगवान नारायण ने उन्हें नरसिंह रूप के रूद्र रूप की जगह शांत रूप का दर्शन दिया, तभी से लोक मंगलकारी नारायण का शांत रूप मूर्ति जन आस्था के रूप में विख्यात है। इसी पावन मंदिर में भगवान बदरीनाथ के कपाट बन्द हो जाने के बाद उनकी मूर्ति को जोशीमठ लाकर हिमकाल छः माह तक भगवान बदरीनाथ की पूजा भी इसी मंदिर में की जाती है ।

इस दिन गायब हो जाएंगे बद्रीविशाल

 

बद्रीनाथ का जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति से खास जुड़ाव माना गया है। नृसिंह भगवान मूर्ति के सन्दर्भ में ऐसी मान्यता है कि आदिगुरू शंकराचार्य जी जिस दिव्य शालिग्राम पत्थर में नारायण की पूजा करते थे उसमें ऐकाएक भगवान नरसिंह भगवान की मूर्ति उभर आयी और उसी क्षण उन्हें नारायण के दर्शन के साथ अद्भूत ज्ञानज्योति प्राप्त हुई 

मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। अलकनंदा की सहचरणी नदी मंदाकिनी नदी के किनारे केदार घाटी है, जहां बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सबसे महत्वपूर्ण केदारेश्वर हैं। यह संपूर्ण इलाका रुद्र याग जिले का हिस्सा है। माना जाता है कि रूद्र याग में ही भगवान रूद्र का अवतार हुआ था 

बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ माना जाता है।

 

माना जाता है कि इस धाम में भगवान श्रीहरी छह माह तक योगनिद्रा में लीन रहते हैं और छह माह तक अपने द्वार पर आए भक्तों को दर्शन देते हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान बद्रीविशाल की मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी हुई चतुर्भुज अवस्था में और ध्यानमुद्रा में है । मंदिर के पट बंद होने पर भी मंदिर में एक अखंड दीपक प्रज्वलित रहता है । इस देवस्थल का नाम बद्री होना भी प्रकृति से जुड़ा हुआ है। हिमालय पर्वत पर इस जगह जंगली बेरी बहुतायत में पाई जाती है। माना जाता है कि इन बेरियों की वजह से ही इस धाम का नाम बद्रीनाथ धाम पड़ा।

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