विष्णुध्वज अब कुतुब मीनार Vishnudhwaj now Qutub Minar

विष्णुध्वज अब कुतुब मीनार Vishnudhwaj now Qutub Minar

Jul 5, 2023 - 23:59
Jul 14, 2023 - 09:35
 0  120
विष्णुध्वज अब कुतुब मीनार Vishnudhwaj now Qutub Minar

श्रीनगर (गढ़वाल) २८ सितम्बर (वार्ता) । कतुब मीनार का असली नाम 'विष्णुध्वज' है। इसका निर्मण सम्राट समुद्र गुप्त ने कराया या न कि तुबुद्दीन ऐबक ने, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है

बिहार विश्वविद्यालय के प्रो. डी. त्रिवेदी का दावा है कि यह मीनार समुद्र गुप्त द्वारा निर्मित बेधशाला की केन्द्रीय मीनार थी।

तुब मीनार का निर्माण समुद्र गुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त ने पूरा किया था और उसने विष्णुपद पहाड़ी पर एक लोहे का स्तम्भ भी खड़ा किया था चन्द्रगुप्त ने वहां एक पट्टिका भी लगवाई थी जिसमें मीनार का नाम 'विष्णु ध्वज' लिखा गया था।

डा. त्रिवेदी के अनुसार चन्द्रगुप्त ने मीनार के चारों ओर २७ मंदिर भी बनवाए थे जो नक्षत्रों का प्रतिनि धित्व करते थे ।

डा. त्रिवेदी मंगलवार को यहां गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्रों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कतुब मीनार पांच डिग्री के कोण पर झा हुआ ही २२ जून को दोपहर में इसकी छाया नहीं पड़ती । यह दिन उत्तरी गोलार्ध का सबसे बड़ा दिन होता

उन्होंने कहा कि कतुब मीनार ऊंचाई की ओर धीरे धीरे कम चौड़ा होता चला गया है। इसकी पहली मंजिल में २४ कोने है दुसरी व तीसरी मंजिल में बारह कोने दी और इतने ही घुमावदार कोने भी हैं। ये कोने वर्ष के परख बाड़ों, राशियों तथा महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।

मीनार के २७ सुराख १०८ तथा इसकी सात मंजिल क्रमश: नक्षत्रों, उनके चौथाई अंशी एक सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनि धित्व करके समूचे पंचांग की तस्वीर पेश करते हैं ।

डा. त्रिवेदी ने बताया कि क मीनार का निर्माण गणित के ठोस सिद्धान्त के आधार पर किया गया था। इसके प्रत्येक कोने तथा दवार के बीच ठीक क्रमशः ३० डिग्री तथा ३५ डिग्री का फासला है ।

त्रिकोण मिति के हिसाब गणना करने पर मीनार की मौलिक ऊंचाई ८७.०३ मीटर बैठती है ।

वेधशाला के २७ मंदिर १९९२ मे नष्ट हो गए थे। इन मंदिरों की सामग्री से निकट ही एक मांस्जद) बनाई गई बाद में इस मस्जिद को तुमतुल इस्लाम नाम दिया गया।

Disclaimer notices

यह पोस्ट इंटरनेट सर्फिंग और लोककथाओं के आधार पर लिखी गई है, हो सकता है कि यह पोस्ट 100% सटीक न हो। जिसमें किसी जाति या धर्म या जाति का विरोध नहीं किया गया है। इसका विशेष ध्यान रखें।

 [email protected]

 ऐसी ही ऐतिहासिक पोस्ट देखने के लिए हमारी वेबसाइट dhrmgyan.com पर विजिट करें

Dhrmgyan अब आप भी इस वेबसाइट पर जानकारी साझा कर सकते हैं। यदि आपके पास लोक साहित्य, लोकसाहित्य या इतिहास से संबंधित कोई रोचक जानकारी है और आप इसे दूसरों के साथ साझा करना चाहते हैं, तो इसे हमारे ईमेल- [email protected] पर भेजें और हम इसे लाखों लोगों के साथ साझा करेंगे। .