कोटड़ा किले का इतिहास हिंदी Kotda Fort History in Hindi
ऐतिहासिक कोटड़ा किला बनाने वाले शिल्पकार के हाथ काट दिए गए
1. ऐतिहासिक कोटड़ा किला बनाने वाले शिल्पकार के हाथ काट दिए गए
बाड़मेर से करीब 53 किमी दूर शिव तहसील के कोटरा गांव के रेतीले इलाके में एक छोटी सी पहाड़ी पर कलाकृतियों से सजा ऐतिहासिक किला बना हुआ है। कोटडे का किला मारवाड़ के बेहतरीन नए कोटो (किलों) में से एक है। कोटरा की गिनती मंडोर, आबू, जालौर, बाड़मेर, परकरन, जैसलमेर, अजमेर और मारू के किलो के साथ की जाती है। बाड़मेर जिले की ऐतिहासिक भूमि पर किराडू, खेड़ जूना गोहाना भाखर जैसे दर्शनीय पुरातात्विक स्थल हैं। एक छोटी सी पहाड़ी पर कलाकृतियों से सजा हुआ कोटड़ा किला है। इस किले के चारों ओर आठ बड़े बुर्ज हैं। इन गढ़ों के बीच विला की ऊंची दीवारों के बीच कई महल और घर हैं। गढ़ और केंद्रीय दीवारों में दुश्मनों से मुकाबले के लिए मोर्चा बनाया गया है। इस किले को बनाने की प्रेरणा जैसलमेर का सोनार किला है। भारी चट्टानों को काटकर कोटड़ा दुर्ग को सोनार दुर्ग जैसा बनाने का अद्भुत प्रयास किया गया है। किले के स्वामित्व के संबंध में एक शिलालेख उपलब्ध है। जिसमें वी.एस. के पहले तीन अक्षर 123 हैं। जबकि आखिरी अक्षर गायब है। इससे पता चलता है कि किला असलदेव द्वारा 1230 से 1239 की अवधि में बनाया गया था। उसने किले की मरम्मत की और कई शाही प्रासाद भी बनवाए। तत्काल भनैः भनैः दुर्ग के भीतरी भागों में कई नए निर्माण कार्यों को कराने में विभिन्न भासोकों व साहूकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्राचीन वैभव के ये ऐतिहासिक शिल्प नष्ट हो गए हैं। कोटडे के किले में एक कलात्मक झरोखा है जिसे स्थानीय भाषा कहा जाता है। मीन मेडी कहते हैं। मेडी जीर्णता की स्थिति में है इसे राव जोधाजी के वंशज मारवाड़ के शासक मालदेव के खजांची गोवर्धन खीची ने बनवाया था। प्राचीन काल से ही कोटरा ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा है। इस किले पर समय-समय पर अनेक आक्रमणकारियों ने आक्रमण किए। मुस्लिम आक्रमण ने कोटरा को पंवारों से छीन लिया। 14वीं शताब्दी में खेड़ के राठौड़ रंधारी ने शिव को अपने कब्जे में रखते हुए कोटा पर अधिकार कर लिया, लेकिन उनके भतीजे राठौड़ चंपा ने उन्हें मारकर कोटा पर अधिकार कर लिया। चम्पा के वंशज प्रसिद्ध दानवीर राणा बाग सिंह का इस क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार था।
2. 14वीं से 15वीं सदी के बीच
14वीं से 15वीं सदी के बीच कोटड़ा पर राठोड़ी का शासन हुआ। उससे पहले पोहड़ पठार और चौहानों का शासन था और उनसे पहले परमारो के बहादराव के पुत्र सांखला जी के पुत्र शिव ने शिवपुरी नगर बसाया था, जिसे अब शिव कहा जाता है।
कोटड़ा और बाड़मेर पर राठौड़ी का शासन एक ही समय हुआ था। रावल जगमाल के समय में उनके पुत्र मंडलक जी, कोटडा लुका जी, बाड़मेर तथा भारमल और रिड़मल जी ने खवड़ पर अधिकार कर लिया।
रावल जगमाल के बाद रावल मदलंक महेवा के रावल बने और लुंका जी बाड़मेर के रावल बने और रिड़मल जी गिराब राव बने। वही कोटड़ा रावल मडलक महेवा के अधिकार में रहा।
रावल मडलक के बाद उसका पुत्र रावल भोजराज महेवा का रावल बना वही मडलक के छोटे पुत्र खेतसी को कोटड़ा मिला। रावल मांडलिक के पुत्र खेतसी के वंशज कोटडिया राठौड़ कहलाते हैं कहा जाता है कि कोटड़ा का किला राणा बाग जी के समय में ही बना था।
राणा बाग जी जोधपुर राव मालदेव के समकालीन थे। ।
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